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हमारा जन्म कैसे होता है ?

Updated: Oct 11, 2024

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मानव के जन्म लेने की विधि शास्त्रो में क्या बताई गई है?

हाभारत के प्रथम खण्ड के नवतितमोऽध्याय (९१) अध्याय में अष्टक के पूछने पर ययाति बताते हे कि अपने कर्मों के कारण से शरीर को पा कर, गर्भ से निकलने के पश्चात जीव सबके सामने प्रकट होता है। ये भौम नाम का नरक है। इससे पहले वह कितने वर्षों तक कहाँ-कहाँ भटकते हुए आया है, उस पर वह दृष्टिपात नहीं कर पाता। वह हजारों वर्षों का सफ़र था।

ऊर्ध्वं देहात् कर्मणा जृम्भमाणाद् व्यक्तं पृथिव्यामनुसंचरन्ति ।

इमं भौमं नरकं ते पतन्ति नावेक्षन्ते वर्षपूगाननेकान्॥ ७॥

          न्म लेने के लिए सर्वप्रथम जब जीव अन्तरिक्ष से गिरता है तो वह जल रूप में होता है। फिर वह नया शरीर धारण करने के लिए बीज रूपी वीर्य बन कर किसी फूल, फल, पेड़, ओषधि, वनस्पति या फिर किसी अन्न में चला जाता है। वह किस में जा रहा है ये प्रकृति ने उसके पिछले कर्मों के अनुसार पहले ही निर्धारित किया हुआ होता है। जल, पृथ्वी, आकाश और वायु आदि में होता हुआ वह अपने कर्मानुसार किसी वृक्ष, पशु, पक्षी या किन्हीं पेड़-पौधों में समा जाता है। अगर हम किसी अणु के कण को अपनी खुली आँखों से नहीं देख सकते तो भगवान के बनाये उस बीज रूपी कण को देखना भी असम्भव ही है। इसलिए हमें वह दिखाई नहीं दे सकता। किसी घर को पाने के पश्चात उसी बीज को पिता बनने वाला प्राणी किसी ना किसी रूप में सेवन कर लेता है और वह बीज उसके वीर्य में धारण हो जाता है। स्त्री के संग उस पुरुष का संसर्ग होने पर वही बीज उस स्त्री के रज में मिल जाता है। तदनन्तर वही बीज गर्भ रूप में विकसित होने लगता है। गर्भाशय में पल रहें जीव को वायु, जिसे मानव प्राण रूप में हर क्षण ग्रहण करता रहता है पालती रहती है। वही उसकी इन्द्रियों की रचना करती है। उस जीव का भविष्य बनाने के लिए, बाहर के किस रस को किस मात्रा में देना है, ये वायु उस बीज के पूर्व कर्मों के द्वारा निर्धारित करती है। क्रमशः वह गर्भ बढ़ता रहता है। जैसे ही उसे पूर्ण रूप से चेतना आती है वह योनि से बाहर आने को लालायित होने लगता है। और समय आने पर एक शरीर के रूप में सबके सम्मुख दिखने लगता है। यही मनुष्य कहलाता है। यही सारी क्रिया किसी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे या फिर किसी जानवर के जन्म में भी दोहराई जाती है।

वनस्पतीनोषधीश्चाविशन्ति अपो वायुं पृथिवीं चान्तरिक्षम् ।

चतुष्पदं द्विपदं चापि सर्वमेवम्भूता गर्भभूता भवन्ति ॥ ११ ॥

          फिर वह आँखों से सब देखने लगता है, नासिका से गन्ध महसूस करने लगता है, जिह्वा से स्वाद, त्वचा से स्पर्श और कानों से स्वर सुनने लगता है। वह सभी अवयवों से सम्पन्न हो जाता है। और अब उसका मन आन्तरिक भावों का अनुभव करने लगता है। स्वप्न के समय यही सूक्ष्म शरीर या जिसे प्राण कहते हैं, वह स्थूल शरीर को छोड़ कर बाहर तो जाता है परन्तु वह इस को दुबारा भी प्राप्त कर लेता है। परन्तु मृत्यु का समय आने के पश्चात वह बस यही नहीं कर पाता और पाप-पुण्य के वेग में बहता हुआ एक नये घर की तरफ चल पड़ता है। पुण्य करने वाले पुण्य-योनियों में चले जाते हैं और पाप करने वाले पाप-योनियों में जाकर कीट-पतंगें बन जाते है।

          मृत्यु होने और जन्म लेने के बीच में एक पड़ाव भी है जिसे साधु पुरुष स्वर्ग या नरक कहते हैं। कितना समय नरक में या स्वर्ग में रहने को मिले गा, ये सब कर्मों पर निर्भर है। विद्वान लोग स्वर्ग के सात द्वार कहते हैं। जिनके नाम हैं- सरलता, तप, दान, शम, लज्जा, दम और समस्त दूसरे लोगों के प्रति दया का भाव होना। मानव चाहे तो इन्हें खुला रख सकता है या फिर स्वयं ही इन्हें बन्द कर सकता है। अगर उसमें उपरोक्त भावों की कोई कमी नहीं है तो ये द्वार सदा उसके लिए खुले रहते हैं नहीं तो बंद हो जाते है। परन्तु अगर अपने कर्मों की शक्ति से उसने ये द्वार खुले रख भी लिए तो उसका एक कर्म ये द्वार फिर से बन्द भी कर सकता है। और वह कर्म है अभिमान। सब पुण्य कर्म करने के पश्चात भी अगर किसी मानव को अभिमान हो जाता है तो तब भी वह उपरोक्त सभी द्वार बन्द हो जाते है।

तपश्च दानं च शमो दमश्च हीरार्जवं सर्वभूतानुकम्पा ।

स्वर्गस्य लोकस्य वदन्ति सन्तो द्वाराणि सप्तैव महान्ति पुंसाम् ।

नश्यन्ति मानेन तमोऽभिभूताः पुंसः सदैवेति वदन्ति सन्तः ॥२२॥

          विद्वान पुरुष कभी भी सम्मान पा कर खुश नहीं होते और संतप्त होने पर कभी भी दुःखी नहीं होते। संत पुरुषों का सत्कार संत पुरुष ही करते हैं, दूसरे नहीं। और सत्य तो ये है कि दुष्ट पुरुषों में ये बुद्धि ही नहीं होती कि वह समझ पायें कि ये या वे संत पुरुष है। वह तो केवल इसी में उलझे रहते हैं कि मैंने ये कर दिया, मुझे यह पता है और मैं तो ये भी कर सकता हूँ इत्यादि-इत्यादि। यह उनका अहंकार है जो उन्हें सत्य जानने ही नहीं देता और अंधकार में भटकाये रखता है।  (कृष्ण एक सत्यज्ञान पुस्तक के अंश)

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Oct 05, 2024
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