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प्राणायाम का महत्व - श्रीकृष्ण मुख से


प्राणायाम का महत्व
प्राणायाम का महत्व

अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे।प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः॥ २९ ॥

यह श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चार का संख्या 29 श्लोक है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को प्राणायाम के बारे में बता रहे हैं।

साधना के लिए यज्ञ के जो चार प्रकार ऊपर, श्लोक संख्या 28 में बताएँ हैं उनमें तीसरे योग यज्ञ में प्राणायाम का बहुत बड़ा भाग है। प्राणायाम श्वास क्रिया को नियंत्रित करके की जाने वाली साधना है। यहाँ पर इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण प्राणायाम द्वारा श्वास साधना की विशेषता बता रहे हैं।

कुछ मानव ऊपर की ओर उठने वाली प्राण उर्जा यानी निष्कासित श्वास और नीचे की ओर जानें वाली प्राण-ऊर्जा यानी निष्कासित श्वास की गति को विवेक पूर्वक रोककर, प्राणायाम के अभ्यास में लगे रहते हैं, यह भी एक प्रकार का यज्ञ ही है। जिसमें मानव अपनी प्राण-ऊर्जा को नियंत्रित और संयमित करके आत्मिक बल प्राप्त करता है।

        ‘अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे’ यानि प्राणायाम योग और साधना का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसका अर्थ है, ‘प्राण’ यानी जीवन शक्ति जो हमारी श्वास है, और ‘आयाम’ यानी नियंत्रण या विस्तार। साधारण शब्दों में, प्राणायाम का मतलब है अपनी श्वास को नियंत्रित करना, उसे सही गति, लय और गहराई देना। प्राण हमारे शरीर में ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। जब हम ठीक से श्वास लेते हैं, तो शरीर में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में पहुँचती है और रक्त शुद्ध होता है, जिससे स्वास्थ्य, मन और आत्मा तीनों पर सकारात्मक असर पड़ता है। प्राणायाम करने की साधारण विधि यह है कि किसी शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठना होता है। पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठना सबसे अच्छा है। सर्वप्रथम रीढ़ सीधी रख कर, आँखें बंद करके और मन को शांत करके बैठना होता है। सबसे पहले सामान्य श्वास लें, अपान करें और छोड़ें, यानि प्राण लें, फिर नाक से धीरे-धीरे गहरी श्वास अंदर भरें, इसे पूरक समझे, कुछ क्षण रोकें, यानि कुंभक समझे और फिर धीरे-धीरे नाक से ही बाहर छोड़ें, जिसे रेचक समझे। शुरुआत में 2-3 मिनट तक करें और फिर धीरे-धीरे इस क्रिया का समय बढ़ाएँ। इसमें अनुलोम-विलोम, कपालभाति, भ्रामरी जैसे तरीके भी शामिल हैं, जो अलग-अलग लाभ देते हैं। प्राणायाम करने से फेफड़े मजबूत होते हैं, ब्लड सर्कुलेशन सुधरता है, पाचन तंत्र अच्छा होता है, तनाव और चिंता कम होती है, और नींद गहरी आती है। मानसिक तौर पर यह मन को स्थिर करता है, चिड़चिड़ापन कम करता है और एकाग्रता बढ़ाता है।

‘प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः’, आत्मिक दृष्टि से, प्राणायाम करने वाले को आंतरिक शांति देता है, मन की चंचलता घटाता है और ध्यान में गहराई लाने में मदद करता है। जब श्वास नियंत्रित होती है, तो मन स्वतः ही शांत हो जाता है, और यही स्थिति साधना के लिए सबसे उपयुक्त होती है। यह न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि आत्मिक बल को भी बढ़ाता है। प्राणायाम करने वाला व्यक्ति जीवन में आने वाली परिस्थितियों को संतुलित मन से स्वीकार करता है, जिसके बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने पहले ही समझाया है। इससे साधक धीरे-धीरे इंद्रियों पर नियंत्रण पाता है और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है। प्राण का सही उपयोग हमें रोगों से दूर भी रखता है और हमारी मानसिक व आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करता है। जो मानव रोज़ प्राणायाम करता है, वह अपने अंदर एक नई ताजगी, शक्ति और स्थिरता महसूस करता है। यह साधना के मार्ग पर चलने वाले के लिए अनिवार्य अभ्यास है, क्योंकि यह न केवल शरीर को तैयार करता है बल्कि मन को भी उच्च स्तर की एकाग्रता और जागरूकता के लिए सक्षम बनाता है। नियमित अभ्यास से न केवल सांस की बीमारियाँ दूर होती हैं, बल्कि हृदय रोग, मधुमेह, और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं में भी लाभ मिलता है। यह हमारे भीतर छुपी हुई ऊर्जा को सक्रिय करता है और हमें सकारात्मक दृष्टिकोण देता है। इस प्रकार, प्राणायाम जीवन के हर पहलू में स्वास्थ्य, शांति और संतुलन लाता है और आत्मिक उन्नति में भी अत्यंत सहायक है, इसी लिए भगवान कृष्ण अर्जुन को इसका महत्व यहाँ बता रहे हैं।

पतंजलि योगसूत्र 2.49 में कहा गया है:तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः॥

श्वास-प्रश्वास की गति को रोकना, नियंत्रण करना ही प्राणायाम है। प्राणायाम योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है, जो पतंजलि योग सूत्र में वर्णित है। वैसे पतंजलि में 195 सूत्र हैं जिन्हें चार अध्यायों में कहा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य चित्त वृत्तियों का निरोध करना है। योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः अर्थात योग का मतलब है मन की चंचलता को रोकना, ताकि आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो सके। प्राण का अर्थ है जीवन शक्ति या वह ऊर्जा जो शरीर को जीवित रखती है और आयाम का अर्थ है विस्तार, नियंत्रण या दिशा देना, ये पहले भी कहा है। इस प्रकार प्राणायाम का मतलब हुआ, श्वास को नियंत्रित और संतुलित करके अपने भीतर प्रवाहित ऊर्जा को जागृत करना और उसे सही दिशा में लगाना। यह केवल शारीरिक व्यायाम की बात नहीं है, बल्कि मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास का मार्ग भी दिखाता है। ध्यान और समाधि की गहराई में जाने का स्पष्ट मार्गदर्शन देता है, इस श्लोक में भगवान यही कह रहे हैं।

हमारे शरीर में सांस केवल ऑक्सीजन लेने और कार्बन डाइऑक्साइड निकालने की प्रक्रिया नहीं है। योग दर्शन के अनुसार सांस में जीवन ऊर्जा यानि प्राण शक्ति होती है, जो शरीर, मन और आत्मा को शक्ति देती है। अगर सांस तेज, अनियमित और उथली है, तो मन भी अस्थिर और चंचल रहता है। वहीं, यदि सांस गहरी, नियमित और धीमी है, तो मन स्वतः शांत और एकाग्र हो जाता है। यही कारण है कि प्राणायाम को भगवान कृष्ण साधना और ध्यान का द्वार कह रहे हैं और इतना अधिक महत्व दे रहे हैं।

प्राणायाम के लिए सर्वप्रथम स्थान और समय का चुनाव अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस से प्राणायाम शीघ्र लाभ देता है। प्राणायाम करने के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा होता है, जब वातावरण शुद्ध और ताज़ा होता है। इसके लिए किसी शांत, हवादार और साफ जगह का चयन करके, यदि संभव हो तो खुले स्थान पर करना चाहिए।  बैठने के लिए किसी भी मुद्रा जैसे पद्मासन, सुखासन या वज्रासन का प्रयोग कर सकते हैं। इन सभी में रीढ़ सीधी और गर्दन सीधी रखनी चाहिए। आँखें हल्के से बंद करने के पश्चात, शरीर को ढीला छोड़ दें। अब कुछ मानसिक तैयारी करें, जैसे कुछ पल सामान्य सांस लें और छोड़ें। मन को वर्तमान में लाने के लिए अपने सांस के आने-जाने पर ध्यान केंद्रित करें। ये सबसे जरूरी हिस्सा है। प्राणायाम हमेशा खाली पेट करना चाहिए या भोजन के 3 घंटे बाद करना चाहिए, धीरे-धीरे समय और अभ्यास की तीव्रता बढ़ानी चाहिए, बहुत ज़ोर से सांस लेने-छोड़ने से बचना चाहिए, यह हानि कर सकता है और सबसे जरूरी कि यदि किसी को गंभीर हृदय रोग, उच्च रक्तचाप या गंभीर फेफड़ों की बीमारी है, तो डॉक्टर की सलाह लेने के बाद ही करना चाहिए।

नाक से धीरे-धीरे गहरी सांस अंदर लें यानि पूरक करें। सांस को आराम से रोकें  यानि कुंभक करें। नाक से धीरे-धीरे सांस बाहर छोड़ें यानि रेचक करें। अवधि शुरुआत में 5 मिनट करें और धीरे-धीरे 15-20 मिनट तक ले जाएँ। दूसरी विधियों को जैसे अनुलोम-विलोम, कपालभाति, भ्रामरी को अलग-अलग समय दें। अनुलोम-विलोम से नाड़ी शुद्धि होती है और मन शांत होता है। कपालभाति से फेफड़ों की सफाई होती है, पेट की चर्बी कम करने में यह सहायक है, और शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालने के लिए भी लाभकारी है। भ्रामरी, मानसिक तनाव, गुस्सा और चिंता को कम करने के लिए करना होता है। भस्त्रिका भी किया जा सकता है, यह शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति बढ़ाने के लिए लाभकारी है।

प्राणायाम करने के बहुत से शारीरिक लाभ भी मिलते हैं। जैसे फेफड़ों की क्षमता और श्वसन प्रणाली मजबूत होती है, रक्त शुद्ध होता है और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है, पाचन तंत्र, हृदय और मस्तिष्क का स्वास्थ्य सुधरता है, ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल को संतुलित रखने में मदद मिलती है और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। प्राणायाम से मानसिक और भावनात्मक लाभ भी मिलते हैं। तनाव, चिंता और अवसाद में कमी आती है, एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है, गुस्सा और चिड़चिड़ापन कम होता है और नींद गहरी और आरामदायक आती है। इसके आध्यात्मिक लाभ भी हैं जैसे मन की चंचलता घटती है और ध्यान में गहराई आती है, इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है, आत्मा के साथ जुड़ाव महसूस होता है और मानव धीरे-धीरे आसक्ति और मोह से मुक्त होता है। श्रीकृष्ण इसी लिए कह रहे हैं कि प्राणायाम ध्यान और साधना के लिए आवश्यक है क्योंकि जब तक मन स्थिर और शांत नहीं होगा, तब तक ध्यान में गहराई नहीं आ सकती। सांस को नियंत्रित करने से प्राण नियंत्रित होता है, और प्राण नियंत्रित होने पर मन भी नियंत्रित हो जाता है। यह मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करता है।

‘प्राणायाम-परायणाः’ प्राणायाम केवल एक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है, तभी तो भगवान श्रीकृष्ण ने इस का भेद यहाँ श्रीमद्भगवद्गीता में बताया है। यह शरीर को स्वस्थ रखता है, मन को स्थिर करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। यह न केवल भौतिक जीवन में सफलता दिलाने में सहायक है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को भी खोलता है। नियमित अभ्यास से हम अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगा सकते हैं और जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य और शांति बनाए रख सकते हैं। प्राणायाम योग, शरीर, मन और आत्मा का शुद्धिकरण, संतुलन और शक्ति देने वाला अभ्यास है।

प्राणायाम योग की गहराई, आत्मशक्ति और संतुलन का मुख्य साधन है।


श्रीकृष्ण ने कहा पुस्तक के अंश (लेखक डॉ. राजेश तकयार) 

 

 
 
 

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