मैं कौन हूँ
- rajeshtakyr
- Jun 8
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मैं एक लेखक हूँ

मुझे आध्यात्मिकता पर लिखना बहुत अच्छा लगता है। ऐसा नहीं है कि मैं कोई इस का विश्लेषक हूँ, बल्कि ये इस लिए है कि जब भी आप आध्यात्मिकता पर सोचते हैं, पढ़ते हैं या लिखते हैं तो आपको आत्मिक सन्तोष मिलता है। आपकी आत्मा को जैसे भोजन मिल जाता है। वह स्वयं को तृप्त मानने लगती है, मेरा तो यही मानना है। इस लिए मैं स्वयं ऐसी किताबें लिखना अच्छा मानता हूँ।
करीब सभी वेद, पुराण और उपनिषद् पढ़ने और उन पर कुछ किताबें लिखने के साथ-साथ, श्रीमद्भगवद्गीता पर लिखना भी बहुत जरूरी लगा। श्रीमद्भगवद्गीता सभी वेदों और पुराणों का सार है। और फिर उसे तो स्वयं श्रीभगवान कृष्ण ने गाया था। तो फिर इसके संगीत का लाभ क्यों ना लिया जाए। यही सोच कर इसका अनुवाद और व्याख्या करने की, ये कोशिश है।
शुरू करते समय ये नहीं सोचा था कि मुझे श्रीमद्भगवद्गीता के कई भाग बनाने होंगे। श्रीमद्भगवद्गीता के सभी अध्यायों की व्याख्या करते हुए आगे जाने से पहले मैंने सोचा है कि पहले भाग की व्याख्या कर के कुछ अपनी टिप्पणियाँ जोड़ दूँ तो पाठकों की राय भी मिल जाएगी, इसी लिए श्रीमद्भगवद्गीता के अर्थ का यह पहला भाग व्याख्याओं और टिप्पणियों के संग आप के हाथों में है। इसमें श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्यायों में से, पहले भाग का गृहस्थ लोगों के लिए बहुत ही आसान भाषा में अर्थ, टिप्पणियों के संग इस श्रीमद्भगवद्गीता के तत्त्वज्ञान में किया है। श्रीमद्भगवद्गीता को पढ़ना प्रत्येक मानव के लिए सौभाग्य की बात है। इससे जीवन जीने के अर्थ मालूम हो जाते हैं। जीवन में आने वाली कठिनाइयों के काँटे फूल लगने लगते हैं। इसका गूढ़ अर्थ सब को समझ आ जाए, इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता की महानता इतनी अधिक क्यों जरूरी है इसके लिए श्रीमद्भगवद्गीता के संग महाभारत की कहानी का जानना भी आवश्यक है, जिस में अट्ठारह अक्षौहिणी सेना मारी गई थी । इसी महाभारत को पढ़ने के साथ-साथ ही मालूम होगा कि श्रीमद्भगवद्गीता को कहने या गाने की आवश्यकता भगवान को क्यों पड़ी? इसी लिए एक लाख दो सौ सत्रह श्लोक यानि अट्ठारह पर्वों तथा अन्दाज़ से 800,000 संस्कृत शब्दों वाली छः अध्यायों में छपी हुई महाभारत को 22000 शब्दों में संक्षिप्त रुप से इस में जोड़ा गया है।
हालांकि महर्षि वेदव्यास जी के मूल ग्रन्थ में तीर्थों का महत्व, नदी, पर्वत, नदियों का वर्णन और वेदों का रहस्य इत्यादि का भी वर्णन है। परन्तु इस संक्षिप्त महाभारत में उन सब का उल्लेख करना असम्भव था, इस लिए उन विषयों को इस में सम्मिलित नहीं किया गया है। इस को लिखते हुए इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है कि ग्रन्थ की मूल भावना बनी रहे।
मेरी सबसे पहली पुस्तक इन्वेंटिंग ड्रीम्स थी, जिसे गोल्डन बुक अवार्ड मिला था। उसके पश्चात मेरी श्रीकृष्ण एक सत्यज्ञान, Diary Of A Monk, सफलता का रास्ता, सिनोप का ख़ज़ाना, Way To Success, Treasury Of Sinop किताबें मार्किट में आ चुकी हैॆ। अब तक के इस सफ़र में आप पाठकों के कारण से अभी कुछ दिन पहले मुझे, एक लेखक होने के लिए राष्ट्रीय भारत रत्न सम्मान और भारत गौरव रत्न श्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।
मैं उम्मीद करता हूँ कि ये मेरी नई पुस्तकें कुरूक्षेत्र का महाभारत, श्रीकृष्ण ने कहा – अध्याय 1 और अध्याय 2 भी आपका प्रेम पाएगी।
मेरी सभी किताबें Amazon and Flipkart पर उपलब्ध हैं।
डॉ. राजेश तकयार
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