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राधाकृष्ण का स्वरूप

Updated: Oct 11, 2024

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ब वापिस हम अपने श्रीकृष्ण पर आते हैं। सर्वप्रथम हमें ये जानना चाहिए कि कृष्ण का स्वरूप क्या है? वे दिखते कैसे हैं? हमारे शास्त्रों में श्रीकृष्ण के रूप का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया हुआ है। पद्मपुराण के पातालखण्ड में श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करने के लिए बहुत विस्तार से बताया गया है।

सुमनप्रकरसौरभोद्गलितमाध्विकाद्युल्लस-

त्सुशाखिनवपल्लवप्रकरनम्रशोभायुतम् ।

प्रफुल्लनवमञ्जरीललितवल्लरीवेष्टितं

स्मरेत सततं शिवं सितमतिः सुवृन्दावनम् ॥

 

र्वप्रथम स्कंध पुराण (वै. मा. मा. १५ । ६६) में लिखा है, शोभाशाली और उद्यानों से भरी हुई एक स्थल पर एक रत्नों से चमचमाता स्वर्ण का मण्डप बना हुआ है, जिसमें कल्पवृक्ष और कई प्रकार के वृक्ष लगे हुए हैं। कल्पवृक्ष बहुत ही मोटा और ऊँचा है। जिसकी नई आई पत्तियाँ मूँगे के समान लाल रंग की है । उस पर कई प्रकार के फल लगे हुए हैं, ऐसा जान पड़ता है जैसे मणियाँ टंगी हुईं हैं। समस्त ऋतुएँ सदा उस पेड़ की सेवा में रहती हैं। उसके नीचे एक सोने से बना हुआ बहुत ही सुन्दर सिंहासन है जिसपर बहुत तरहं की मणियों लगी हुई हैं। उस सिंहासन का प्रकार कमल समान है, जिसपर राधा के साथ बाल गोपाल श्रीकृष्ण बैठे हुए हैं। वह युवा हैं। मध्यभाग में बैठे हुए उनकी आभा सूर्यदेव की भाँति देदीप्यमान हो रही है । उनको किसी समयकाल में कोई भी नहीं बाँध सकता।

उनकी छवि श्याम सुथरी, लागे पर छवि नाय,मुख के ऊपर लहरें करत, घुँघराले केस सुभाय।जैसे पूनम के चाँद पर, काले बादल आई,टोलियाँ घूमत संग-संग, मानौ छवि लहराई।

कबहुँ लागै कमल दलन पै, भ्रमरन की हो धूम,बैठन की जो बारी देखत, करत फिरत मस्त झूम।मस्तक पर सोने की किरीट, मोर पंखी सजे सुभाय,रत्न जड़े मुकुट शोभा करत, रूप लावण्य अपनाय।

ऐसी छवि की शोभा निरखी, जन-जन के मन मोह,श्याम रंग में ऐसी मूरत, देखि सबै बस रोह।

नकी छवि श्याम रंग की लग रही है, परन्तु है नहीं; मुख के ऊपर शिरोदेश में काले-काले घुँघराले केश ऐसे लहरा रहें हैं, जैसे पूर्णमासी के चन्द्रमा पर काली बादलों की टोलियाँ टहलने चली आईं हों, कभी-कभी लगता है कि जैसे किन्हीं कमल के झुंड पर भ्रमरों का समूह बैठने के लिए अपनी बारी के इंतजार में बेसब्री से उधर-उधर धूम रहा है। मस्तक पर स्वर्ण निर्मित किरीट शोभायमान हो रहा है, जिसमें मोर पंखी लगी होने से वे रूप ही लावण्यमय हो गया है। मुकुट में विभिन्न प्रकार के रत्न जड़े हुए हैं।

शरदिन्दुसमानाभं सुन्दरं नीलमेचकम्।

बालकृष्णं नमस्यामि गोपीजनमनोहरम्॥

वृजभाषा में श्रीकृष्ण का रूप वर्णन

उनका रंग शरद चंदा जस, चमकत नीले मेघ समान,अलसी फूलन की झुंड सौं, हो तुलना सुथरी जान।ऐसो रूप मोहै मन सबको, सुंदर आनन शुभ निशान,नीलकमल जस नयन जुड़ावै, इंदीवर जस युगल प्राण।

गाल खिले जस फूल बनौरी, कानन में मकराकृति झूल,माथे पर चंदन टीका सोहै, उर्ध्वपुंड्र बन्यो अनुकूल।गले में वैजयंती माला, पाँच पुष्पन की सजी सुभाय,मधुकर मँडरावत माला ऊपर, मन मोहनि रूप लुभाय।

कंठ में मुक्ताहार चमकै, नाक तोते जस नुकीली,बिंबफल जस होंठ शोभा करत, मंद मुस्कान बस खिली।दन्त पंक्ति चमकै ऐसी, हीरा-संदीप सब लजाय,श्रीखण्ड, कपूर, चपला तज्यो, फूलन सी कांति पर छाय।

 

नका रंग शरद् ऋतु के चंद्रमा जैसा चमकदार और नीले मेघ के समान है। उनकी तुलना अलसी के फूलों के झुंड के साथ की जा सकती है। ये रूप किसी के भी मन को मोहने वाला है। उनके सुन्दर शुभद आनन प्रफुल्ल इन्दीवर-सदृश युगल नेत्र नीलकमल के समान सुंदर हैं। उनके गाल फूल के समान खिले हुए हैं। उनके पास ही कानों में पहने हुए मकराकृति कुंडल शोभित हो रहें हैं। उनके माथे पर उर्ध्वपुंड्र चन्दन का टीका लगा हुआ है। (यह दो ऊर्ध्वाधर (लंबवत) रेखाओं का होता है।) गले में पाँच प्रकार के पुष्पों से बनी हुई वैजयंती माला पहनी हुई है। उस पर मधु-लोलुप मधुकर मँडरा रहे हैं। और कण्ठ में प्रकाशमान मुक्ताहार पहना हुआ है। उनकी नाक नुकीली (तोता नासिका) है, होंठ बिम्बफल लग रहें हैं, और उन अधरों पर हल्की सी मंद मुस्कान मणि में चमचमाती आभा लग रही है। उनकी दन्त पंक्ति ने हीरे, श्रीखण्ड, कपूर, चपला, अमृत, मल्लिका, चन्दन और केवड़े के फूलों की कान्ति को तिरस्कृत कर रखा है।

स्रजं च कौस्तुभं तत्र हरिराधाय शोभनः।

बालक्रीड़ासु संलग्नः सुरसिन्धुरिवापरः॥

नके वक्ष पर प्रभा समन्वित सुन्दर कौस्तुभ मणि और वनमाला सुशोभित हो रही है। उनकी ग्रीवा एक तरफ थोड़ा झुकी हुई है। उनका बाल रूप इतना मनोहारी है कि वे खेलते समय भी समुद्र की भांति गहरी और आकर्षक छवि प्रस्तुत करता है।

नमामि बालकृष्णं च शिलासानुगताननम्।

व्रजाङ्गनासहायुक्तं वन्दे गोपालनन्दनम्॥

नका मुख और वक्षःस्थल शिलाओं पर खेलने के कारण और गौओं की धूलि पड़ने से धूलमय हो गया है। वे व्रज की गोपियों के साथ आनंदित होते हैं और गोपों के प्रिय हैं। उनके सभी अंग बहुत ही हृष्ट-पुष्ट हैं।

करारविन्दैर्न्यस्तं नीलोत्पलदलान्निभम्।

बालं गोपालकं वन्दे मृदुलास्यकथानवम्॥

नके हाथ नीले कमल के दल की भांति कोमल हैं और जिनका बाल स्वभाव अत्यंत मृदु और मनमोहक है।

व्रजेन्दुनन्दनं बालं ब्रह्मकान्तिसमप्रभम्।

वन्दे बालं सदा श्यामं नीलोत्पलदलप्रभम्॥

नकी कान्ति ब्रह्म के समान दिव्य और उज्ज्वल है। उनका श्यामल शरीर नीले कमल के पत्ते के समान चमकदार है।

मृदुस्मितं च पश्यन्तं बालकृष्णं नमाम्यहम्।

सर्वलक्षणसंपूर्णं नन्दगोपसुतं शुभम्॥

वे जपाकुसुम फूलों के लाल दलों की तरह की मृदु मुस्कान के साथ सबको देखते हैं। वे सभी शुभ लक्षणों से युक्त हैं और नंद गोप के सुपुत्र हैं।

बालकृष्णं नमस्यामि द्विभुजं गोपवेषधृतम्।

क्रीडन्तं गोपबालैश्च पायसं चोरयन्तकम्॥

ह द्विभुजधारी हैं, गोपवेश धारण किए हुए हैं। उनके हाथ किसी लाल फूल की तरह से खिले लग रहे हैं। उनकी मनोहर पिंडलियां है और तेज से भरपूर कदलीखण्ड जैसी जाँघों के पास कटि की करधनी में बँधी हुई जंजीर की प्रभा विद्युत् के समान सब तरफ व्याप्त हो रही है। समस्त सुखों को देने वाले, चरणों में नूपुर तथा बाँहों में नाना प्रकार की मणियों के बने हुए बाजूबंद धारण किया हुए है। उनके गले में सोने के तारों की शिल्पकला से बुना हुआ, पीले रंग का एक तपाये हुए सुवर्ण की शोभा को तिरस्कृत करता हुआ अंगरखा लटक रहा है। अग्नि के समान कान्तिमान् अद्भुत कंगन से सुशोभित उनके दाहिने हाथ में खीर का पात्र है और बायें हाथ में माखन है जिसे अभी-अभी निकाला गया है। बहुत सारी गाय और भगवान् के ही समान शील, गुण, अवस्था और वेशभूषा वाले गोप और उनका गुणगान करती गोपियाँ उन्हें घेर कर खड़ी हैं। कई बाल गोप भी हैं जिनकी मीठी-मीठी तोतली वाणी कई बार साफ समझ भी नहीं आती। कई गोपांगनाएँ, जो उनके प्रति दृढ़ अनुराग रखती हैं, उन्हें प्रेम पूर्ण दृष्टि से निहार रही हैं । वे अलंकरणों से सुसज्जित और अद्वितीय आकर्षण से परिपूर्ण है, करोड़ों कामदेव से समाहित लगने वाले वे अपनी मंद-मंद मुस्कान से देख रहें हैं। सामने ब्रह्मा, शिव तथा इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय खड़ा होकर उनकी स्तुति कर रहा है। उनके दक्षिण भाग में बहुत से ऋषि-मुनियों का समुदाय उपस्थित है। पीछे की ओर समाधि से मुक्ति की इच्छा रखने वाले सनकादि योगीश्वर खड़े हैं। वाम भाग में अपनी स्त्रियों के संग सिद्ध, यक्ष, गन्धर्व इत्यादि खड़े हैं। सब नाच रहे हैं, गा रहे हैं। सब खुशी से झूम रहे हैं, बहुत ही मनोहारी दृश्य है।  ये रूप देख कर मेरे हाथ जुड़े हुए हैं, मेरी आँखें निश्चल अटल उन्हें ही निहार रही हैं। मैं उन्हें झपकाना भी नहीं चाहता, हालांकि मेरी आँखें बंध तो हो रही है परन्तु मैं केवल उनके इसी रूप को ही निहारता रहना चाहता हूँ।

वृजभाषा में श्रीराधा का रूप वर्णन

उधर देखौं राधा रानी, बड़ो मोहक रूप लखाय,अनोखौ अर दिव्य सुथरो, सब सौं न्यारो रूप दिखाय।जैसै पूनम कौ चंदा, शीतलता सौं सुख लुटाय,कोमलता अर मृदु भावन सौं, जुग-जुग कौ प्रेम जगाय।

गौरवर्ण उनकी छवि चमकै, जैसे चंदन कों उजियार,नीले रंग की ओढ़ी वृंदावनी, लालन घाघरो काज अपार।सुनहरी किनारी अर जरि कौ काम, अर नीली चोली सुभाय,रूप सजावत रूपमती, देखि सब कों मन बहकाय।

हल्की नीली ओढ़नी ओढ़ै, गोल्डन फूलन कौ काज कराय,ऐसी राधा रानी देखिके, मोरौ मन बस उनहीं पै जाय।हर नजर सौं रूप अनूठो, मन मोहत छवि प्यारी है,राधा रानी कौ ये रूप, मोर प्रीत की किलकारी है।

धर जब मैं राधा जी को देखता हूँ तो वे अत्यंत सुंदर और मोहक हैं। उनका सौंदर्य बहुत अद्वितीय और दिव्य है। ऐसा लगता है कि जैसे पूर्णमासी का चन्द्रमा अपनी पूरी शीतलता और कोमलता का एहसास दे रहा हो। उनका रंग गौरवर्ण है। राधाजी ने नीले रंग का वृंदावनी लाल रंग का घाघरा और नीले रंग की चोली पहनी हुई है, जिनमें सुनहरे किनारे और जरी का काम है। एक हल्के नीले रंग की ओड़नी ओड़ी हुई है। उस पर गोल्डन रंग की फूलों की कढ़ाई की हुई है।

चन्दनेन समायुतं सीमन्ताधः स्थलोज्ज्वलम् ।

सुचारुकबरीं रम्यां चकार मालती सती॥ ५६॥

मनोहरां मुनीनां च मालतीमाल्यभूषिताम्।

कस्तूरीकुङ्कुमाक्तं च चारुचन्दनपत्रकम्॥ ५७॥

स्तनयुग्मे सुकठिने चकार चन्दना सती ।

चारुचम्पकपुष्पाणां मालां गन्धमनोहराम्॥ ५८॥

मालावती ददौ तस्यै प्रफुल्लां नवमल्लिकाम् ।

रतीषु रसिका गोपी रत्नभूषणभूषिताम्॥ ५९॥

तां चकारातिरसिकां वरां रतिरसोत्सुकाम्।

शरत्पद्म दलाभं च लोचनं कज्जलोज्ज्वलम्॥ ६०॥

नके कण्ठ में रत्नमाला है, दोनों चरणकमलों में आलता लगा हुआ है, माथे पर मांग के पास कस्तूरी और चन्दन को मिलाकर बिन्दी लगी हुई है, उनके बाल घने और लंबे हैं परन्तु उन्होंने बहुत सुन्दर जूड़ा बना रखा है और उसमें मालती के फूल लगाए हुए हैं। उत्तम चम्पा पुष्पों की माला पहनी हुई है, रत्नभूषणों का क्षृंगार किया हुआ है। उनकी आँखें बहुत ही सुन्दर हैं। ऐसा लगता है जैसे वे हमारे अन्दर की सारी पीड़ा, सारे दुःख और सभी कमियाँ समाप्त करके हमारे भीतर प्रेम भर रहीं हैं। आँखों में कज्जल लगा हुआ है जिससे वे और भी ज्यादा उज्ज्वल लग रही हैं। उन्होंने हाथों में पारिजात के सुगन्धित फूलों से बने हुए कंगन पहने हुए हैं, कानों में भी फूलों से बने बहुत सुन्दर कुंडलिका पहनें हुए हैं। राधाजी की मुद्रा बहुत ही सौम्य और प्रेममयी है। वे श्रीकृष्ण जी की ओर प्रेम भरी दृष्टि से निहार रहीं हैं। अगर आप बार-बार युगल जोड़ी का रूप वर्णन पढ़ेगें तो ये छवि आपके भी ह्रदय में दिखने लगेगी। (कृष्ण एक सत्यज्ञान पुस्तक के अंश)

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Sep 20, 2024
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