top of page

महाभारत का सत्य

Updated: Oct 11, 2024

rajeshtakyar.com

ब्रह्मन् वेदरहस्यं च यच्चान्यत् स्थापितं मया ।

साङ्गोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया ॥ ६२ ॥

 

हाभारत काव्य ग्रन्थ के बारे में लोगों में बहुत बड़ा मिथक है कि इस धर्मग्रन्थ को घर पर नहीं रखना चाहिए। ये किन्हीं का फैलाया हुआ झूठ है।

र्वप्रथम व्यासजी ने ध्यान-योग में स्थित होकर अपनी ज्ञानदृष्टि से इतिहास में घटित होने वाली महाभारत में उल्लेखित सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देख कर इस ग्रन्थ का निर्माण किया है, इस बात को जानकर ब्रह्मा जी उनके पास आये। तब व्यास जी बोले- “हे भगवन् ! मैंने सम्पूर्ण लोकों में पूजित होने वाले एक महाकाव्य की रचना की है। और इसमें मैंने सम्पूर्ण वेदों के गुप्त रहस्यों को, सभी शास्त्रों के सार को और इतना ही नहीं सभी उपनिषदों तथा वेदों के अंगों का भी इस में निरूपण किया है।”

ब ब्रह्मा जी के कहने पर गणेशजी से इस ग्रन्थ को लिखने की प्रार्थना व्यास जी ने की, तभी से ये काव्य महाभारत के नाम से हमारे सम्मुख है। इसी महाभारत के शुरू में ही कहा गया है कि जो मानव अज्ञान के अन्धकार में अंधे होकर भटक रहें हैं उनके लिए ये ज्ञानचक्षु खोलने वाली शलाका है। इसके पढ़ते ही सभी प्रकार का अंधकार मिट जाता है। मानव के जीवन में आने वाली प्रत्येक कठिनाइयों का हल है इसमें। ये भारत-पुराण ऐसा दीपक है जिस के प्रकाश से मोह का अन्धकार ही नहीं मिट जाता बल्कि उसे जीवन जीने का रास्ता स्पष्ट दिखाई देने लगता है।

व्यासजी ने सर्वप्रथम इस काव्य की साठ लाख श्लोकों की संहिता बनाई थी परन्तु उसमें से केवल एक लाख श्लोकों का ही ये आद्यभारत यानि महाभारत इस मनुष्ययोग में प्रतिष्ठित है। व्यासजी ने सबसे पहले इसका अध्ययन अपने पहले पुत्र श्रीशुकदेवजी को कराया था।

श्रद्दधानः सदा युक्तः सदा धर्मपरायणः ।

आसेवन्निममध्यायं नरः पापात् प्रमुच्यते ॥ २६१ ॥

        आगे महाभारत में स्पष्ट कहा गया है कि धर्म को मानने वाला जो भी व्यक्ति इस महागाथा के अध्याय या अध्यायों का श्रद्धा के साथ प्रतिदिन पाठ करता है वह हर प्रकार के पाप से मुक्त हो जाता है।

अनुक्रमणिकाध्यायं भारतस्येममादितः ।

आस्तिकः सततं शृण्वन् न कृच्छ्रेष्ववसीदति ॥ २६२ ॥

 

तना ही नहीं इससे आगे कहा गया है कि इस का नित्य पाठ करने से उस पर किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता और अगर आता भी है तो उसका दुःख उसे पीड़ित नहीं कर पाता। जो इसके किसी अंश का पाठ प्रातः, मध्याह्न या सायंकाल में करता है तो वह हर तरहं के पाप से मुक्त हो जाता है। ये जीवन का अमृत है। इसे मानव को प्रत्येक दिन अध्ययन के द्वारा पीना ही चाहिए, इससे सफ़ल जीवन जीने की कला आती है और शत्रुओं का नाश हो जाता है। संघर्ष करना बहुत आसान हो जाता है। इसका अध्ययन करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, दीर्घ आयु मिलती है और उसकी कीर्ति में वृद्धि होती है।

 

पुरा किल सुरैः सर्वैः समेत्य तुलया धृतम् ।

चतुर्भ्यः सरहस्येभ्यो वेदेभ्यो ह्यधिकं यदा ॥ २७२ ॥

तदा प्रभृति लोकेऽस्मिन् महाभारतमुच्यते।

महत्त्वे च गुरुत्वे च ध्रियमाणं यतोऽधिकम् ॥ २७३॥

        महाभारत के प्रथमोऽध्यायः में लिखे उपरोक्त श्लोक में इस ग्रन्थ की महिमा स्पष्ट दिखाई देती है। इसका अर्थ यह है कि बहुत समय पहले सभी देवताओं ने मिल कर इस महाभारत ग्रन्थ का गौरव जानने के लिए सत्य के तराजू के एक पलड़े पर सभी चारों वेदों को रखा और दूसरे पलड़े पर महाभारत को रखा। परन्तु देवताओं ने देखा कि महाभारत चारों वेदों के भार से अधिक निकला। तभी से पूरे संसार में महर्षि व्यास द्वारा रचित इस महाकाव्य को महाभारत के नाम से पुकारा जाने लगा है। जो इस रहस्य को जान लेता है उसके पितरों की मुक्ति हो जाती है और उसकी आने वाली पीढ़ियाँ सुखी जीवन बिताती हैं। परन्तु पढ़ते समय केवल शर्त एक ही है कि पढ़ने वाले का भाव शुद्ध होना चाहिए। अपने शत्रु की हानि के लिए इस में कोई उपाय नहीं ढूंढ़ना चाहिए।  (कृष्ण एक सत्यज्ञान पुस्तक के अंश)

1 Comment

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
Guest
Oct 02, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

Thanks to know...

Like

Copyright © 2024 Rajesh Takyar. All Rights Reserved.

Join for new Post and updates.

  • Instagram
  • Facebook
  • X
  • LinkedIn
  • YouTube
bottom of page