भगवान का अणु रूप
- rajeshtakyr
- Oct 18, 2024
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Updated: Oct 20, 2024

बहुत से मानवों को एक संशय रहता है कि भगवान आखिर है कहाँ? विज्ञान इसे सिद्ध क्यों नहीं करता?
ब्रह्मपुराणम् के प्रथमोऽध्यायः (१) के शुरू में ही एक श्लोक है:
आधारभूतं विश्वस्याप्यणीयांसमणीयसाम्।
प्रणम्य सर्व्वभूतस्थमच्युतं पुरुषोत्तमम्॥२५॥
ज्ञानस्वरूपमत्यन्तं निर्मलं परमार्थतः।
तमेवार्थस्वरूपेण भ्रान्तिदर्शनतः स्थितम्॥२६॥
भगवान सम्पूर्ण विश्व का आधार है, जो सबसे सूक्ष्म वस्तुओं से भी सूक्ष्मतर है, जो कभी पतित नहीं होते, उस भगवान और श्रेष्ठ पुरुष को मैं प्रणाम करता हूँ। वह भगवान सभी प्राणियों के भीतर विद्यमान हैं। जो ज्ञानस्वरूप हैं, परम अर्थ में अत्यंत निर्मल हैं, उस भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ। यद्यपि वे सत्य रूप में सबमें स्थित हैं, परंतु भ्रम के कारण ही उन्हें अन्यथा देखा जाता है। परन्तु मनुष्य उनका सही स्वरूप समझने के लिए भ्रम से मुक्त होता ही नहीं है। जबकि भगवान को समझने के लिए इस भ्रम से मुक्त होना अति आवश्यक है कि वह कहाँ पर है। सम्पूर्ण जगत पैदा होता है, स्थिर रहता है, फलता-फूलता है और फिर एक दिन उन्हीं भगवान में विलीन हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? ये जिज्ञासा तो बनी ही रहती है।
मुण्डकोपनिषद् के द्वितीय मुण्डक के प्रथम खण्ड में कहा गया है:
दिव्यो ह्यमूर्तः पुरुषः सबाह्याभ्यन्तरो ह्यजः ।
अप्राणो ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात् परतः परः ॥ २ ॥
ये परमात्मा तो शरीर रहित है फिर इसमें ये सब दृष्टिगोचर होने वाला सृष्टि-समूह जाकर विलीन कैसे हो जाता है? ये परमात्मा तो आकार रहित भी कहा गया है। निःसंदेह वह है भी। परन्तु ये इस जगत् के बाहर और भीतर मौजूद है, तो फिर ये है कहाँ? उपनिषद् कहते हैं कि ये जन्म से रहित हैं, न तो इनके प्राण हैं, न ही इन्द्रियाँ हैं, न मन है और न ही शरीर है। वे इन सब विकारों के बिना भी सब कुछ करने के योग्य भी है। सबसे उत्तम भी है, सर्वशक्तिमान भी है और सभी जीवात्माओं से श्रेष्ठ तथा अविनाशी भी है।
आगे कहा गया है कि ये परमात्मा न ही उत्पन्न होता है और न ही इसका कभी नाश होता है, ये वायु में भी है, ये आकाश में भी है, प्रत्येक मानव शरीर में भी है, प्रत्येक जीव-पशु-पक्षी में भी है। निर्जीव वनस्पतियों में भी प्राण बन कर सजीव है, जल-तेज सबमें है। सब कुछ करने में समर्थ है, परन्तु कैसे?
प्रश्न ये उठता है कि इस परमात्मा का कोई आकार-विकार तो है नहीं तो फिर इनसे कोई ये आकार-विकार वाला जगत उत्पन्न कैसे हो सकता है?
जब भी जगत उत्पन्न होता है तो उसका क्रम भी एक ही प्रकार का नहीं होता, हर बार अलग होता है। और ये भी कहा गया है कि भगवान जैसा क्रम-संकल्प करते हैं वैसा ही क्रम, वैसा ही नियम बन जाता है।
इन सब प्रश्नों के उत्तर बहुत आसान हैं। भगवान का कोई आकार नहीं है, ये तो सर्वप्रथम मानना ही पड़ेगा। इसको मानने या मानने से पहले कुछ तथ्यों की जानकारी लेना भी बहुत आवश्यक है। विज्ञान ने अब तक सूक्ष्म से सूक्ष्म तीन पदार्थ खोजें हैं।
1. लेप्टॉन (जैसे इलेक्ट्रॉन)
2. क्वार्क और
3. हिग्स बोसोन
इन सबके बारे में विज्ञान का कहना है कि इनका कोई आकार नहीं है जिसे मापा जा सके। पहला लेप्टॉन कण है जोकि परमाणु के चारों ओर परिक्रमा करता है। ये क्वार्क की तरहं से अब तक विज्ञान से नहीं मापा गया और इसे भी कणों का समूह कहा गया है। इसका पता 1897 में चला था, जिसे जे. जे. थॉमसन (J.J. Thomson) ने ढूंढा था। जिसे बाद में इलेक्ट्रॉन नाम दिया गया। इसी कड़ी में म्यूऑन की खोज 1936 में कार्ल डी. एंडरसन के (Carl D. Anderson) द्वारा की गई। इसे दूसरा लेप्टॉन भी कहा जाता है। 1936 से लेकर 1956 तक और भी कई खोज हुईं हैं।
दूसरे पदार्थ क्वार्क (Quarks) की अवधारणा की खोज 1964 के दशक में की गई थी। इसे मरे गेल-मान (Murray Gell-Mann) और जॉर्ज ज़्विग (George Zweig) नाम के दो वैज्ञानिकों ने पहली बार ढूंढा था। और इस पर भी उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी हेड्रॉन कण वास्तव में और भी छोटे कणों से बने होते हैं, जिन्हें उन्होंने क्वार्क कहा। 1968 में SLAC (Stanford Linear Accelerator Center) में किए गए प्रयोगों में इस प्रोटॉन के अंदर बहुत सारे छोटे कणों के होने के प्रमाण भी मिले है। तो क्या यहाँ पर ये नहीं मान लेना चाहिए कि इन सबसे अलावा भी कुछ छोटे कण हैं जिन्हें विज्ञान अभी देख ही नहीं पाया।
तो क्या वे ही भगवान हैं?
तीसरा कण, हिग्स बोसोन (Higgs Boson) जिसे आम तौर पर ‘गॉड पार्टिकल’ भी कहा जाता है, ब्रह्मांड में कणों को द्रव्यमान देने वाला कण है। इसे 1964 में CERN के Large Hadron Collider में पीटर हिग्स (Peter Higgs) और उनके साथ कुछ अन्य वैज्ञानिक द्वारा खोजा गया था। इसका भी कोई आकार विज्ञान के पास नहीं है। इन्हें विज्ञान की भाषा में बिंदु कण (Point Particles) कहा जाता है। इसके पश्चात भी इन जैसे कुछ शक्तिशाली कणों की खोज जुलाई 2012 में भी की गई। इसी को लेकर पीटर हिग्स और फ्रेंकोइस एंगलर्ट को 2013 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जब इतने महीन कण मौजूद हैं कि विज्ञान अभी तक उन्हें माप नहीं सका है तो पुराणों में लिखी इस बात को मान लेने में किसी को क्यों एतराज होना चाहिए कि भगवान का भी कोई आकार-प्रकार नहीं है। वह सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतम है, उसके माप के लिए अभी तक कोई शब्द बना ही नहीं है। इतना सूक्ष्म होने के कारण से ही वह भगवान कण-कण में है, यही सत्य है। इसीलिए वह निराकार है, सर्वतः है, सारे जगत की प्रत्येक इकाई में है, यही पुराण, वेद और उपनिषद् कह रहे हैं। मेरे शरीर में, आप के शरीर में, उसके शरीर में और प्रत्येक दिखाई देने वाली या ना नहीं दिखाई देने वाली रचना में प्राण रूप में वही सूक्ष्म कण है। जिसने ये जान लिया, मान लिया उसने भगवान को पा लिया। यही भगवान का सार है और यही परिभाषा है।
समुद्र सूख सकता है, वायु छोटे से गुब्बारे में भी बाँधी जा सकती है, आकाश को बादल लुप्त कर सकते हैं, पर्वत एक अदना सा व्यक्ति तोड़ सकता है, उफनती नदी को बाँध बना कर रोका जा सकता है, बढ़े से बढ़े ग्रह को कोई ब्लैक होल लील सकता है, अग्नि को जल बुझा सकता है यानि प्रत्येक वस्तु-पदार्थ का अन्त हो सकता है परन्तु उन सब में मौजूद एक कण का अन्त नहीं हो सकता, जो कि भगवान है और कणों का समूह है। वही भगवान है। इसलिए पुराण-शास्त्र कहते हैं कि भगवान अजन्मा है, नाशवान है। नाशवान का कोई नाश नहीं कर सकता। इसका विनाश संभव नहीं है।
ये भगवान श्रीकृष्ण गीता के दूसरे अध्याय के श्लोक संख्या १७ में स्वयं भी कहते हैं:
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति ॥ १७ ॥
आगे भगवान ने कहा है कि जो लोग ये बिना किसी संशय के जान लेते हैं कि भगवान यानि श्रीकृष्ण अनादि और अजन्मा हैं अर्थात उनका योगमाया से नाना रूपों में जन्म केवल लीला के लिए ही होता है वह मानव सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाते हैं। भगवान केवल भक्तों को सुख देने और पापों का नाश करने के लिए ही आते हैं, ये जानकर प्राणी सुखी हो जाता है, उसे कोई विपदा नहीं आती। परन्तु इसमें उसका विश्वास और श्रद्धा ही महत्व रखती है।
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ ३ ॥
किन्हीं अणु का माप ना कर पाने के कारण विज्ञान ने स्वयं ही बता रखा है कि कई बहुत सूक्ष्म कण हैं जिन्हें वे कभी भी नहीं जान पायेगा। वही से भगवान का प्रारम्भ होता है।
(कृष्ण एक सत्यज्ञान पुस्तक के अंश)



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