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भगवान कहाँ पर है ?

Updated: Oct 11, 2024

rajeshtakyar.com

ये प्रश्न कई बार कई लोगों के हृदय में उठता होगा। शास्त्रों में इस का उत्तर कई बार कई जगह पर दिया हुआ है। सर्वप्रथम सर्वमान्य भगवद् गीता के अध्याय ९ की श्लोक संख्या ४ में स्वयं कृष्ण कहते हैं :

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।

मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित: ॥

स का अर्थ है कि भगवान अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कह रहे हैं कि मैं अपने अव्यक्त रूप यानि निराकार रूप में पूरे जगत में व्याप्त रहता हूँ। सभी प्राणी मुझमें स्थित हैं, परंतु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ। वैसे मेरा कोई रूप नहीं है परन्तु समय आने पर, किसी की भक्ति से प्रसन्न होकर मैं किसी विशेष रूप में प्रकट हो जाता हूँ, इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मैं सारे जगत में हर स्थान, प्रत्येक कण-परमाणु-अनु में हूँ और ये सारा संसार मुझ में ही स्थित है। सभी प्राणी, ये सृष्टि मुझ में ही है। मैं इस सृष्टि में होकर भी इस सृष्टि में नहीं हूँ। मेरी उपस्थिति हर जगह है, वे प्रत्येक प्राणी और पदार्थ में निवास करती है।

हाँ भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि उनकी शक्ति और उपस्थिति पूरे संसार में विद्यमान है। यद्यपि सभी जीव उनसे जुड़े हुए हैं, वे स्वयं उन जीवों में स्थूल रूप में नहीं हैं। इसका तात्पर्य यह है कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान हैं, फिर भी वे अपने आप में स्वतंत्र हैं।

ईश्वर सर्वत्र है, यह विचार भगवद् गीता और कई पुराणों में विभिन्न श्लोकों द्वारा व्यक्त किया गया है। ईश्वर की सर्वव्यापकता और सर्वत्र उपस्थित होने की भावना वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों में विस्तार से वर्णित है।

उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।

        श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिसे मानव आत्मा कहता है, वे मैं ही तो हूँ। मैं आत्मा रूप में सभी में रहता हूँ। मुझ को कितने ही लोग अपने ध्यान से, शुद्ध की हुई बुद्धि से, अपने ह्रदय में देख पाते हैं। कुछ लोग मेरे इस रूप को अपने कर्मों के द्वारा देख लेते हैं और कुछ लोग ज्ञानयोग के माध्यम से मुझे प्राप्त हो जाते हैं यानि मैं उनको दिखाई दे जाता हूँ।

एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा। 

कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च ॥

श्वेताश्वतरोपनिषद के ६ वें अध्याय के ११ वें श्लोक में लिखे इस श्लोक का भी यही अर्थ है कि सभी प्राणियों में एक देव रहता है, जो सर्वव्यापी है, सर्वत्र है, शुद्ध और निर्गुण है, सब किये का साक्षी रहता है, सभी की अन्तरात्मा कह सकते हो, समस्त प्राणियों का स्वामी भी वह है, मानव (मैं) के द्वारा किए सभी कर्मों की देखभाल करने वाला यानि अध्यक्ष भी वही है। वह किसी भी प्रकार के गुणों से रहित है। इसीलिए वे यानि परमात्मा सब कुछ जानता है, जो कुछ भी हम मानव करते हैं। उससे कुछ भी नहीं छुपा, एक प्रकार से वह हमारे शरीर में लगा हुआ इस सृष्टि को बनाने वाले का कैमरा भी कह सकते हैं जो सब रिकार्ड करता रहता है।

          ही बात द्वितीय मुण्डक उपनिषद् के प्रथम खण्ड के दूसरे श्लोक में लिखी हुई है।

दिव्यो ह्यमूर्तः पुरुषः सबाह्याभ्यन्तरो ह्यजः।

अप्राणो ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात् परतः परः ॥

श्रीविष्णु पुराण के प्रथम अंश में श्रीपराशर ऋषि मुनि मैत्रेय जी को कह रहें हैं कि भगवान विष्णु में ही ये जगत् ओत-प्रोत है, उन्हीं में स्थित है और उन्हीं से उत्पन्न भी हुआ है। तुम ये कह सकते हो कि वे प्रभु ही सम्पूर्ण जगत् हैं।

तत्र सर्वमिदं प्रोतमोतं चैवाखिलं जगत् ।

ततो जगज्जगत्तस्मिन्स जगच्चाखिलं मुने ॥ ६४ ॥

क्या वायु हमें आँखों से दिखाई देती है ? क्या परमाणु को हम अपने नेत्रों से देख सकते हैं? इसका उत्तर बुद्धिवान व्यक्ति यही देगा कि ‘नहीं।’ जब हम मानव इस वायु को नहीं देख सकते, अणु को नहीं देख सकते। ये वायु तो हमारे बाहर भी है, भीतर भी है, हृदय में भी है, मस्तिष्क में भी है। इसे हम प्राण कहते हैं। तो क्या अणु से लघु कुछ ऐसा नहीं हो सकता जो है तो सही परन्तु हम उसे देख नहीं सकते, केवल महसूस कर सकते हैं। वे हमारे आसपास प्रत्येक वस्तु में है, कण-कण में है, तो अगर प्रभु कृष्ण कह रहें हैं कि वे कण-कण में हैं तो गलत क्या कह रहें हैं। बस केवल हमें मान लेना भर है। फिर आप देखना कि हमारे साथ सब कुछ ठीक होने लगा है। हम किसी का बुरा करने से डरने लगेंगे, कि कोई हमें देख रहा है। किसी का हम बुरा नहीं सोचेंगे कि कोई हमें देख रहा है। किसी भी प्रकार के पाप को करने से डरने लगेंगे कि कोई हमें देख रहा है।


ज्ञानी केवल यही करते हैं।

2 Comments

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Guest
Sep 27, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

राधे राधे

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Guest
Sep 20, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

good..

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