गायत्री मंत्र कैसे पढ़े
- rajeshtakyr
- Sep 14, 2024
- 3 min read
Updated: Oct 11, 2024

विद्वान् पुरुष को चाहिये कि अपने शरीर के पैर से ले कर सिर तक चौबीस स्थानों में पहले गायत्री के अक्षरों का न्यास करे। इसके इस प्रयास से उसे परम शान्ति का अनुभव होगा। तब वे महाज्ञानी कहलाएगा।
इसके लिए वे गायत्री मंत्र के ‘तत्’ का पैर के अँगूठे में, 'स' का गुल्फ (घुट्ठी)-में, ‘वि’ का दोनों पिंडलियों में, ‘तु' का अपने घुटनों में, 'र्व' का जाँघों में, 'रे' का गुदा में, 'ण्य' का अण्डकोष में, 'म्' का कटिभाग में, 'भ' का नाभिमण्डल में, 'र्गो' का उदर में, 'दे' का अपने दोनों स्तनों में, 'व' का अपने हृदय में, 'स्य' का दोनों हाथों में, ‘धी' का अपने मुँह में, 'म' का तालु में, 'हि' का नासिका के अग्रभाग में, 'धि' का अपने दोनों नेत्रों में, 'यो' का दोनों भौंहों में, ‘यो' का ललाट में 'नः' का मुखके पूर्वभाग में, 'प्र' का दक्षिण भाग में, 'चो' का पश्चिम भाग में और 'द' का मुख के उत्तर भाग में न्यास करे। फिर 'यात्' का अपने मस्तक में न्यास करके सर्वव्यापी स्वरूप से स्थित हो जाय। धर्मात्मा पुरुष इन अक्षरों का न्यास करके ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसा हो जाता है।
फिर आगे सन्ध्या – काल के लिये एक और न्यास बतलाया गया है। उसका वर्णन है। 'ॐ भूः ' इसका अपने हृदय में ? न्यास करके, 'ॐ भुवः' का सिर में न्यास करे। फिर 'ॐ स्वः' का शिखा में', 'ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम्' का अपने समस्त शरीर में, 'ॐ भर्गो देवस्य धीमहि' इसका अपने नेत्रों में तथा 'ॐ धियो यो नः प्रचोदयात्'का ‘दोनों हाथोंमें न्यास करे। तत्पश्चात् ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ' का उच्चारण करके जल - स्पर्श मात्र करने से द्विज शुद्ध होकर श्रीहरि को प्राप्त होता है। इस प्रकार व्याहृति और बारह ॐकारों से युक्त गायत्री का सूर्योपस्थानकाल (सन्ध्या के समय) कुम्भक क्रियाके साथ तीन बार जप करके, जो चौबीस अक्षरों की गायत्री का जप करता है, वह महाविद्या का अधीश्वर होता है और ब्रह्मपद को प्राप्त करता है। व्याहृतियों सहित इस गायत्री का पुनः न्यास करना चाहिये। ऐसा करने से उसे सब पापों से मुक्ति मिलती है। न्यास- विधि यह है—'ॐ भूः पादाभ्याम्' का उच्चारण करके पहले अपने दोनों चरणों का स्पर्श करे। इसी प्रकार 'ॐ भुवः जानुभ्याम् ' कह कर दोनों घुटनों का स्पर्श करे, ‘ॐ स्वः कट्याम्' बोल कर कटिभाग का, ॐ महः नाभौ' का उच्चारण कर के नाभिस्थान का स्पर्श करे, ‘ॐ जनः हृदये' कहकर हृदय का, ॐ तपः करयोः' बोल कर अपने दोनों हाथों का, ॐ सत्यं ललाटे' का उच्चारण कर के ललाट का तथा गायत्री- मन्त्र का पाठ कर के अपनी शिखा का स्पर्श करे।
शास्त्रों में बार-बार ये कहा गया है कि जब भी हम अपने इष्ट की छवि मन में रख कर उनका ध्यान करें तो हमें उनका रूप स्पष्ट याद रहना चाहिए। ये ना हो कि आप नाम तो राधाकृष्ण का ले रहें हैं परन्तु मन में छवि भगवान शिव की या विष्णु जी की हो। और इसी प्रकार से जब आप राधाकृष्ण के सम्मुख खड़े होकर विष्णु जी की या माता की आरती गा रहें हैं तो भी उचित नहीं हैं। इसका साफ अर्थ है कि आप मांग किस से रहें हैं इसमें आप स्वयं ही शंकित हैं।
दूसरा आप जब भी अपने इष्ट को याद करें तो आप जितने भी नाम उनके जानते हैं उनसे पुकारिए। नाम किसी भी इष्ट के तभी हैं जब उन्होंने उस नाम को सार्थक करती कोई लीला की होगी। इसका दूसरा अर्थ ये भी है कि आप अपने इष्ट के द्वारा की हुई लीलाओं का वर्णन बार-बार करें, तभी वे प्रसन्न होते हैं। ये बात बहुत किताबों में कही गई है।
उनके जिस-जिस अंग पर दृष्टि पड़ती है, वहीं-वहीं आँखें ठहर जाती हैं या यूँ कहो कि हटने में समर्थ ही नहीं रहती। यही सत्यज्ञान है जिसे आप बार-बार पढ़ कर, श्रवण करके इस संसार के जंगल से पार निकल सकते हैं। इस को अगर आपने समझ लिया तो फिर आप को कुछ और नहीं चाहिए। (कृष्ण एक सत्यज्ञान पुस्तक के अंश)



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