खाटू श्याम बाबा का सत्य
- rajeshtakyr
- Nov 20, 2024
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Updated: Nov 22, 2024

स्कन्दपुराण के माहेशवरखण्ड-कुमारिकाखण्ड [2] के अध्याय ६० और ६६ में घटोत्कच विवाह और उनके पुत्र बर्बरीक के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। बर्बरीक के बारे में किसी और पुराण या शास्त्र में कोई ज़िक्र नहीं है।
शौनक ऋषि जी के पूछने पर उग्रश्रवा ( सूत् जी ) बताते हैं कि जब घटोत्कच अपनी माता हिडिंबा देवी के कहने पर पाण्डवों से मिलने के लिए इन्द्रप्रस्थ आये। वहाँ उन्हें श्री कृष्ण जी सहित सभी पाण्डवों से मिलना हुआ। तब श्री कृष्ण ने सबको बताया कि मुरदैत्य की कन्या मौरवी ( कामकटंकटा ) का विवाह घटोत्कच से होगा। कुछ समय उपरांत ऐसा ही हुआ। विवाह होने के पश्चात घटोत्कच और उनकी पत्नी के यहाँ एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। जन्म लेते ही वे बालक युवावस्था को प्राप्त हो गया। तब घटोत्कच ने बालक को छाती से लगाकर कहा - बेटा! तुम्हारे केश बर्बराकार ( घुँघराले ) हैं। इसलिए तुम्हारा नाम ‘बर्बरीक’ होगा।
बर्बराकार केशत्वात् बर्बरीक अभिधः भवान्।
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६१, श्लोक ६७)
बर्बरीक को लेकर पिता घटोत्कच द्वारिका श्री कृष्ण से मिलने पहुँचे। तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी से कहा - आर्यदेव माधव ! मैं आप को प्रणाम करता हूँ और ये पूछता हूँ कि संसार में उत्पन्न हुए जीव का कल्याण किस साधन से होता है। तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा - तुम पहले बल प्राप्त करने के लिए देवियों की आराधना करो। तुम्हारा हृदय बहुत ही सुन्दर है इसलिए आज से तुम्हारा एक और नाम ‘सुहृदय’ भी होगा।
तस्मात्सुहृदयेत्येवंदत्तंनाम मया द्विकम्।
एवमुक्त्वासमालिङ्ग्यसन्तर्प्यविविधैर्धनैः ॥ ३३ ॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६१, श्लोक ३३)
तब बर्बरीक ने महीसागरसंगम तीर्थ में जा कर नौ दुर्गाओं की अराधना की। तीन वर्षों तक बर्बरीक ने देवियों की अराधना की। तब देवियों ने बर्बरीक की पूजा से संतुष्ट होकर प्रत्यक्ष दर्शन दिया और साथ में वे दुर्लभ बल प्रदान किया जो तीनों लोकों में किसी और के पास पहले नहीं था। देवियों ने बर्बरीक को एक नया नाम ‘चण्डिल’ भी दिया और आशीर्वाद दिया कि वे समस्त विश्व में प्रसिद्ध और पूजनीय होगा।
अहं च रक्षयिष्यामिस्वभक्तंकृष्णमृत्युतः।
यस्माच्चचण्डिकाकृत्येकृतोऽनेनमहारणः ।
तस्माच्चण्डिलनाम्नाऽयं विश्वपूज्यो भविष्यति॥७१॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६५, श्लोक ७१)
सूत जी आगे कहते हैं - तदनन्तर जब सभी पाण्डव और राजा ‘उपप्लव्य’ नामक स्थान पर युद्ध के लिए एकत्रित हुए। तब युधिष्ठिर ने सब से कहा – देवकीनन्दन ! भीष्म पितामह से रथियों और अतिरथियों का वर्णन सुन कर दुर्योधन ने अपने पक्ष के महारथियों से पूछा है कि कौन वीर कितने-कितने दिन में युद्ध को समाप्त कर सकता है। अतः यही प्रश्न अब मैं आप सभी से भी पूछ रहा हूँ ।
ये सुनकर अर्जुन ने कहा - मैं एक दिन में ही युद्ध मे सेनासहित समस्त कौरवों को नष्ट कर सकता हूँ । अर्जुन की बात सुन कर घटोत्कच पुत्र बर्बरीक ने हँसते हुए कहा - अर्जुन और श्री कृष्ण आप सब लोग चुपचाप खड़े रहें, मैं एक ही मुहूर्त में भीष्म आदि सबको यमलोक में पहुँचा दूँगा। मेरे भयंकर धनुष को, इन दोनों अक्षय तूणीरों को तथा भगवती सिद्धाम्बिका के दिए हुए इस खड्ग को भी आप लोग देखे। ऐसी दिव्य वस्तुएँ मेरे पास हैं। तभी मैं इस प्रकार सबको जीतने की बात कहता हूँ।
सर्वे भवन्तस्तिष्ठन्तु सार्जुनाःसहकेशवाः।
एकोमुहूर्ताद्भीष्मादीन्सर्वान्नेष्ये यमक्षयम्॥२३॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६६, श्लोक २३)
लज्जित होकर तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण की तरफ़ प्रश्नांकित होकर देखा। तब श्रीकृष्ण ने घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक से पूछा- वत्स! भीष्म, द्रोण, कृप, अश्वत्थामा, कर्ण और दुर्योधन आदि महारथियों के द्वारा सुरक्षित कौरवसेना को, जिस पर विजय पाना श्रीकृष्ण के लिए भी कठिन है, तुम इतना शीघ्र कैसे मार सकते हो ? तुम्हारे पास ऐसा कौन सा उपाय है ? ये सुन कर बर्बरीक ने तुरंत ही धनुष चढ़ाया और उस पर बाण सन्धान किया। फिर उस बाण को लाल रंग की भस्म से भर दिया और कान तक खींच कर छोड़ दिया। उस बाण के मुख से जो लाल भस्म उड़ा, वह दोनों सेनाओं में आये हुए सैनिकों के मर्मस्थलों पर गिरा। केवल पाँच पाण्डव, कृपाचार्य, श्रीकृष्ण और अश्वत्थामा के शरीर से उस लाल रंग से बिन्दु का निशान नहीं लगा।
तदहं दर्शयाम्येष पश्यध्वं सहकेशवाः ।
इत्युक्त्वा धनुरारोप्य सन्दधे विशिखं त्वरन्।
निःशल्यं चाऽपि सम्पूर्णं सिन्दूराभेण भस्मना ॥३८॥
आकर्णमाकृष्य च तं मुमोच मुखादथोद्भूतमभूच्च भस्म ॥३९॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६६, श्लोक ३८-३९)
तब बर्बरीक ने सब लोगों से कहा - आप लोगों ने देखा कि इस क्रिया के द्वारा मैंने मरनेवाले सभी वीरों के मर्मस्थान का निरीक्षण किया है। अब उन्हीं मर्मस्थानों में देवी के दिये हुए तीक्ष्ण और अमोघ बाण को मारूँगा, जिनसे ये सभी योद्धा क्षणभर में ही मृत्यु को प्राप्त हो जायँगे। आप सब लोगों को अपने-अपने धर्म की सौगंध है, कदापि शस्त्र ग्रहण न करें। मैं दो ही घड़ी में इन सब शत्रुओं को तीखे बाणों से मार गिराऊँगा।
बर्बरीक के ऐसा कहते ही श्रीकृष्ण ने कुपित होकर अपने तीखे चक्र से बर्बरीक का मस्तक काट गिराया।
वासुदेवश्च संक्रुद्धश्चक्रेण निशितेन च ।
एवं ब्रुवत एवाऽस्य शिरश्छित्त्वा न्यपातयत्॥४८॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६६, श्लोक ४८)
यह देख कर वहाँ कोलाहल फेल गया और सब आश्चर्य से श्रीकृष्ण की और देख कर रोने लगे। तभी सभी सिद्धाम्बिका आदि चौदह देवियाँ वहाँ आ पहुँची। तब देवी श्री चण्डिका ने घटोत्कच को सांत्वना देकर उच्च स्वर से कहा - ‘सब राजा सुनें। विदितात्मा भगवान श्रीकृष्ण ने महाबली बर्बरीक का वध किस कारण से किया है, वह मैं बतलाती हूँ। पूर्वकाल में दुःखी होकर पृथ्वी देवताओं के पास गई और बोली - आप लोग मेरा भार उतारें। मैं राक्षसों के पापों से दब रहीं हूँ । तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कहा। उसी समय ‘सूर्यवरचा’ नामक यक्षराज ने भुजा उठा कर कहा - ‘आप लोग मेरे रहते हुए मनुष्य लोक में क्यों जन्म धारण करते हैं ? मैं अकेला ही अवतार लेकर पृथ्वी के भारभूत सब दैत्यों का संहार कर दूँगा।’
अहमेकोऽवतीर्यैतान्हनिष्यामिभुवोभरान्।
स्वधर्मशपथा वो वैसन्तिचेज्जन्मप्राप्स्यथ॥६१॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६६, श्लोक ६१)
ये सुन कर ब्रह्मा जीं कुपित होकर बोले - दुर्मते ! पृथ्वी का यह महान भार सभी देवताओं के लिए दुःसह है। और उसे तू केवल अपने लिए ही साध्य बतलाता है। मूर्ख ! पृथ्वी का भार उतारते समय युद्ध शुरू होने से पहले ही विष्णुावतार श्रीकृष्ण अपने हाथ से तेरे शरीर का नाश करेंगे।’
शरीरनाशं कृष्णात्त्वमवाप्स्यसिन संशयः ।
एवं शप्तो ब्रह्मणाऽसौ विष्णुमेतदयाचत ॥६५॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६६, श्लोक ६५)
ब्रह्मा जी के शाप से दुःखी होकर सूर्यवरचा ने भगवान विष्णु से याचना की - ‘भगवान! मेरी एक प्रार्थना है कि जन्म से ही मुझे ऐसी बुद्धि दीजिए, जो सब अर्थों को सिद्ध करने वाली हो।’ तब भगवान विष्णु ने देवसभा में कहा -‘ऐसा ही होगा। देवियाँ तुम्हारे मस्तक की पूजा करेंगी। तुम पूज्य हो जाओगे। उसके पश्चात वैसा ही हुआ है, जैसा भगवान ने कहा था। अतः तुम सब दुःखी मत हो। ये सूर्यवरचा ही, घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक है।’
आगे स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं - ‘हे देवी चण्डिका ! यह भक्त का मस्तक है। इसे तुम अमृत से सींचो और इसे अजर-अमर बना दो।’ जीवित होने पर जब बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा बताई तो तब भगवान बोले - ‘वत्स! जब तक यह पृथ्वी, आकाश, चन्द्रमा और नक्षत्र रहेंगे तब तक तुम बर्बरीक सब लोगों के द्वारा पूजनीय होओगे। अब तुम जाकर इस पर्वतशिखर पर चढ़ कर वहाँ रहो। वहीं से होने वाले युद्ध को तुम देखना।’ सुनकर बर्बरीक का मस्तक पर्वत के शिखर पर स्थित हो गया और इन का शरीर पृथ्वी पर पड़ा था, उसके बाद उनके शरीर का विधिवत संस्कार कर दिया गया। मस्तक का कोई संस्कार नहीं हुआ।
इत्युक्ते चण्डिकादेवीतदाभक्तशिरस्त्विदम्।
अभ्युक्ष्यसुधयाशीघ्रमजरंचामरंव्यधात्॥७३॥
(स्कन्दपुराण कुमारिकाखण्ड अध्याय ६६, श्लोक ७३)
राजस्थान के सीकर जिले में खाटू गांव में स्थित बाबा खाटू श्याम जी का मंदिर वही स्थान है जहाँ पर अमृत से भीगा हुआ वीर और अमरता को प्राप्त श्री बर्बरीक जी का कटा हुआ सिर रखा हुआ है। उनका शीश अजर-अमर है और भक्त उनसे जो मांगते है वह वे अवश्य पूर्ण करते हैं। उस मंदिर की देश और विदेश में बहुत अधिक मान्यता है।

आगे सूत जी कहते हैं कि ब्राह्मणों ! इस प्रकार मैंने तुम को बर्बरीक के जन्म का वृत्तांत बतलाया है।



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